Thursday, 22 November 2012

कुर्बानी का बकरा



कुर्बानी का बकरा
बकरीद से एक दिन पहले यों ही बस बकरों की मंडी मे जाने का मौका मिल गया , पाठकों को बता दूं की ना तो मेरा कुछ बकरों  से लेना देना है , ना बकरीद से , ये तो बस टहलते टहलते पहुँच गया , ना तो पहले कभी ऐसी जगह पे गया था ना ही मैने कभी पहले ऐसे अनुभव का अनुभव किया था , हाँ मेरा बहुत से नेताओं से ज़रूर पाला पड़ा था , पर नेता और कुर्बानी के बकरे मे क्या समानता , आपके साथ कुछ कटु अनुभव बाँट रहा हूँ
बाबू जी , कौन सा बकरा लेना है ? बकरे वाला हरेक को ये प्रश्न पूछ रहा था , तरह तरह के बकरों से उसकी खुली फुटपातिया अस्थाई दुकान सजी हुई थी , कुछ लोग बिल्कुल चीट्टे सफेद कुर्ते , और उँचे पांचिए वाले पायजामे मे ,बकरों के पुठठो को छू कर तौल रहे थे ,
बाबू जी ले जाओ , इसको हर रोज किलो दूध बादाम खिलाया जाता है , बस कीमत थोड़ी उँची है , आपका पूरा परिवार मज़े ले ले के खाएगा , बड़े प्यार से इसे पाला है , इसका नाम और काम बस सलमान जैसा है , थोड़े और कम का शाहरुख भी सामने है , वो चाहें तो वो ले लो , बाबू जी , इनको बेटों की तरह पाला है ,
बकरा भी हमे देख कर मिमिया रहा था , जैसे अपने मलिक की तारीफ पे फूला ना समा रहा हो , कुछ मरियल बकरे , पेड़ की रस्सी से बँधे कुछ सूखे पत्तों को चबर चबर चबा रहे थे , हमे पता था की इनकी जिंदगी का समय निश्चित है , आज वो बात बड़ी ग़लत साबित हो रही थी की मौत अल्लाह के हाथ है , अल्लाह जब चाहे उठा ले , कुछ लोग इस चार पैर के जानवर को ज़बरदस्ती दुपहिया सकूटर पे , समान की तरह लाद कर ले जा रहे थे , बस कुछ ही घंटो की तो तकलीफ़ थी , कुछ घंटो के बाद , तिलक लगा कर , छुरी पना कर छुरी रान मे घोंप दी जाएगी, और सुर्ख लाल रक्त की एक धार तेज़ी से छूटेगी  , मैने किसी इंसान मे ऐसी धार निकलते नही देखी , आत्मा की मुक्ति भी इतनी जल्दी नही होती , आत्मा तड़पति रहती है , बस ये सब तो अल्लाह के नाम पे हुआ है , अब अल्लाह की मर्ज़ी जब जान शरीर से निकाले , जान के शरीर से निकलते ही , काट कर , खाल अलग अलग कर , टुकड़े कर सबको बाँट दिया जाता है , कुछ हिस्सा अल्लाह को भी दे दिया जाता है , ताकि अल्लाह भी खुश रहे
कुछ लोग कानाफुसी कर रहे थे , महनगाई बहुत बढ़ गई है , अब तो साधारण सा दिखने वाला मरियल बकरा भी 5-6 हज़ार से कम नही , पर मुल्ले मौलवियों ने सही सोच समझ कर , बकरा साझा करने की , तरकीब निकाली होगी , 2-3 आदमी हिस्सा डाल कर तो खरीद ही सकते हैं ,
पूरा परिवार ना हो तो खरीदारी मे मज़ा नही आता , अब सब्जी भाजी , और बकरा खरीदना तो औरतों का काम है , वो अछी तरह मौल भाव कर सकती हैं , कुछ काले बुर्क़े मे लिपटी औरतें भी नज़र आ रही थी , दूर से देखने पर उनमे और काले बकरों मे कोई फ़र्क नज़र नही आ रहा था , हाँ इतना फ़र्क ज़रूर है की बकरा तो कल कट जाएगा , वो तो जिंदगी भर किस्तों मे कटती रहेगीं ,
दोस्तो कुर्बानी के बकरे के बारे मे इतने अनुभव मैने आपसे बाँटे, कोई ग़लती हो तो माफ़ करना
आपका अपना बकरा
संकलन द्वारा कड़वा सच
जय हिंद

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