कुर्बानी का बकरा
बकरीद से एक
दिन पहले यों
ही बस बकरों
की मंडी मे
जाने का मौका
मिल गया , पाठकों
को बता दूं
की ना तो
मेरा कुछ बकरों से
लेना देना है
, ना बकरीद से
, ये तो बस
टहलते टहलते पहुँच
गया , ना तो
पहले कभी ऐसी
जगह पे गया
था ना ही
मैने कभी पहले
ऐसे अनुभव का
अनुभव किया था
, हाँ मेरा बहुत
से नेताओं से
ज़रूर पाला पड़ा
था , पर नेता
और कुर्बानी के
बकरे मे क्या
समानता , आपके साथ
कुछ कटु अनुभव
बाँट रहा हूँ
बाबू जी , कौन
सा बकरा लेना
है ? बकरे वाला
हरेक को ये
प्रश्न पूछ रहा
था , तरह तरह
के बकरों से
उसकी खुली फुटपातिया
अस्थाई दुकान सजी हुई
थी , कुछ लोग
बिल्कुल चीट्टे सफेद कुर्ते
, और उँचे पांचिए
वाले पायजामे मे
,बकरों के पुठठो
को छू कर
तौल रहे थे
,
बाबू जी ले
जाओ , इसको हर
रोज २ किलो
दूध बादाम खिलाया
जाता है , बस
कीमत थोड़ी उँची
है , आपका पूरा
परिवार मज़े ले
ले के खाएगा
, बड़े प्यार से इसे
पाला है , इसका
नाम और काम
बस सलमान जैसा
है , थोड़े और
कम का शाहरुख
भी सामने है
, वो चाहें तो
वो ले लो
, बाबू जी , इनको
बेटों की तरह
पाला है ,
बकरा भी हमे
देख कर मिमिया
रहा था , जैसे
अपने मलिक की
तारीफ पे फूला
ना समा रहा
हो , कुछ मरियल
बकरे , पेड़ की
रस्सी से बँधे
कुछ सूखे पत्तों
को चबर चबर
चबा रहे थे
, हमे पता था
की इनकी जिंदगी
का समय निश्चित
है , आज वो
बात बड़ी ग़लत
साबित हो रही
थी की मौत
अल्लाह के हाथ
है , अल्लाह जब
चाहे उठा ले
, कुछ लोग इस
चार पैर के
जानवर को ज़बरदस्ती
दुपहिया सकूटर पे , समान
की तरह लाद
कर ले जा
रहे थे , बस
कुछ ही घंटो
की तो तकलीफ़
थी , कुछ घंटो
के बाद , तिलक
लगा कर , छुरी
पना कर छुरी
रान मे घोंप
दी जाएगी, और
सुर्ख लाल रक्त
की एक धार
तेज़ी से छूटेगी , मैने
किसी इंसान मे
ऐसी धार निकलते
नही देखी , आत्मा
की मुक्ति भी
इतनी जल्दी नही
होती , आत्मा तड़पति रहती
है , बस ये
सब तो अल्लाह
के नाम पे
हुआ है , अब
अल्लाह की मर्ज़ी
जब जान शरीर
से निकाले , जान
के शरीर से
निकलते ही , काट
कर , खाल अलग
अलग कर , टुकड़े
कर सबको बाँट
दिया जाता है
, कुछ हिस्सा अल्लाह
को भी दे
दिया जाता है
, ताकि अल्लाह भी खुश
रहे
कुछ लोग कानाफुसी कर
रहे थे , महनगाई बहुत बढ़ गई है , अब तो साधारण सा दिखने वाला मरियल बकरा भी 5-6 हज़ार
से कम नही , पर मुल्ले मौलवियों ने सही सोच समझ कर , बकरा साझा करने की , तरकीब निकाली
होगी , 2-3 आदमी हिस्सा डाल कर तो खरीद ही सकते हैं ,
पूरा परिवार ना हो
तो खरीदारी मे मज़ा नही आता , अब सब्जी भाजी , और बकरा खरीदना तो औरतों का काम है
, वो अछी तरह मौल भाव कर सकती हैं , कुछ काले बुर्क़े मे लिपटी औरतें भी नज़र आ रही
थी , दूर से देखने पर उनमे और काले बकरों मे कोई फ़र्क नज़र नही आ रहा था , हाँ इतना
फ़र्क ज़रूर है की बकरा तो कल कट जाएगा , वो तो जिंदगी भर किस्तों मे कटती रहेगीं
,
दोस्तो कुर्बानी के
बकरे के बारे मे इतने अनुभव मैने आपसे बाँटे, कोई ग़लती हो तो माफ़ करना
आपका अपना बकरा
संकलन द्वारा कड़वा
सच
जय हिंद
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